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सलाहों का महाजाल || web of advice

 

सलाहों का महाजाल || web of advice

    पहले तो सिर्फ दादी - नानी के नुस्खे ही थे , पर डिजिटल दौर में हर कोई सलाह देता दिख रहा है । डिजिटल मंचों पर जिंदगी के हर पहलू पर सलाह और जानकारी का भंडार मिल रहा है । ऐसे में क्या हमें हर सूचना पर ध्यान देना चाहिए ? अगर इन सलाहों - सूचनाओं का इस्तेमाल करें , तो सही नजरिया क्या हो ? ये सवाल मन को अकसर परेशान करते हैं और सलाहों के महाजाल में मन फंसकर रह जाता है । कैसे निकलें इससे बाहर , बता रही हैं

    पिछले दिनों एक मित्र का फोन आया । वह गुड़ खा रहा था । इस मौसम में गुड़ । वह बोला , ' तुम्हें तो पता ही है कि मीठा मुझे पसंद है । लेकिन वजन न बढ़े , इसलिए गुड़ खाता हूं । ' यह सलाह उसे उसकी एक मित्र ने दी थी । जबकि , जिन लोगों को परंपरागत खानपान का ज्ञान है , उनके अनुसारगुड़ चिलगोजे , पिस्ते आदि गर्मियों में हरगिज नहीं खाने चाहिए , क्योंकि इनकी तासीर गर्म होती है ।

     लेकिन मित्र ने इतना गुड़ खाया कि एक दिने नकसीर फूट गई । मुफ्त की सलाह न पड़ जाए भारी जब से तकनीक बढ़ी है मोबाइल सबके हाथों में है , तब से तरह - तरह की जानकारी और ज्ञान देने वाले वीडियो , वेबसाइट्स आदि बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं । आसपास के लोगों के पास ही नहीं , नाते - रिश्तेदारों के पास भी ज्ञान का खजाना है । कई बार ऐसी देखी सुनी बातों को लोग ज्यों का त्यों अपना लेते हैं , जबकि इन्हें किस विशेषज्ञता की कसौटी परकसा गया है , पता ही नहीं होता । 

     एक लड़की ने अपने झड़ते बालों से परेशान थी । सोशल मीडिया के विज्ञापन पर भरोसा कर उसने तेल मंगाया , जिसको लगाते ही उसके सिर में भयंकर एलर्जी हो गई । सोशल मीडिया के विविध मंचों पर जाएं तो योग बेशुमार विशेषज्ञ , आयुर्वेद विशेषज्ञ पैदा हो गए हैं । कुछ साल पहले एक बुजुर्ग ने ऐसे ही एक सलाह पर आंखों में नमक लगा लिया लिया था । हालत इतनी खराब हुई कि फौरन अस्पताल दौड़ना पड़ा । मुश्किल से आखा की रोशनी बची ।

भरोसा करने से पहले -

बच्चे की देखभाल कैसे करें , उसे क्या खिलाएं , कैसे नहलाएं , किस स्कूल में पढ़ाएं ... इन सब मामलों में भी दोस्तों से लेकर आस - पड़ोस के लोग अलग - अलग स्रोतों से जानकारी लेकर हाजिर हैं । उनकी कुछ सलाहें अच्छी हो सकती हैं , मगर बच्चे के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा , इसके लिए डॉक्टरों और घर के बुजुर्गों की बातों पर ही विश्वास करना समझदारी है , क्योंकि डॉक्टर सेहत के बारे में हम से बेहतर जानते हैं और बुजुर्गों ने तरह - तरह के अनुभवों के साथ अपनी उम्र बिताई है । हर एक सलाह पर ध्यान दिया , तो मुसीबत झेलनी पड़ सकती है ।

जानकारी की सीमा करें निर्धारित -

सूचनाओं का स्रोत चाहे जो हो , इस संबंध में एक सीमा निर्धारित करना आपकी भी जिम्मेदारी है । किसी के बताए से प्रभावित होने के मुकाबले , खुद फैसला करें । किसी मुसीबत में घबराने से भी कोई फायदा नहीं , क्योंकि अंग्रेजी में एक कहावत है " देअर इज आलवेज ए वे इन एवरी इमजेंसी । सूचना के इस महाविस्फोट के युग में जानकारी लें , तो उसके बारे में सही जानकारी भी प्राप्त करें ।


ज्यादा सूचनाए बढ़ा रही तनाव -

एक रिपोर्ट के अनुसार चार में से एक व्यक्ति डॉक्टर के पास जाने के बजाय ' सेल्फ डायग्नोसिस ' यानी रोग की खुद ही पहचान कर रहा है । ऐसी डायग्नोसिस से 74 % लोगों में तनाव बढ़ रहा है ।
इंडिया हेल्थ ऑनलाइन सर्वे के अनुसार 49 फीसदी इंटरनेट यूजर्स सेहत संबंधी जानकारी पाने के लिए डिजिटल मीडिया का उपयोग करते हैं । भोजन , पोषण व फिटनेस के लिए सुझाव लेने वाले लोगों का ग्राफ भी बढ़ रहा है ।
सिर्फ गूगल पर रोजाना प्रति मिनट 70,000 हेल्थ संबंधी सर्च होती हैं , जहां एलोपेथी से वैकल्पिक चिकित्सा तक की चमत्कारी सलाह , वह भी मुफ्त में मिल जाती है ।

क्या होता है असर -

  • शोध की मानें तो किसी एक विषय पर ढेर सारी जानकारी इकट्ठा करने से संज्ञानात्मक सेहत होती है प्रभावित । क्योंकि मानव मस्तिष्क एक समय में केवल एक निश्चित मात्रा में जानकारी प्रोसेस कर सकता है । जब हम उस सीमा को पार कर जाते हैं , तो हम चिढ़ने लगते हैं , सोचने की क्षमता कमजोर होने लगती है , यहां तक कि एक छोटा - सा निर्णय भी एक बड़ी परीक्षा की तरह लग सकता है ।
  • बड़ी मात्रा में सूचनाओं का उपभोग करना हमारे दिमाग को थका देता है । यही कारण है कि छोटे - छोटे निर्णयों में भी सूचनाओं का जोड़ - तोड़ और विश्लेषण लगाने पर यह काम भी आपके लिए चुनौतीपूर्ण लग सकता है और एक सुखद अनुभव के बजाय तनाव मिलता है ।
  • जब आप जानकारी से भरे होते हैं , तो यह केवल निर्णय लेने की आपकी क्षमता को प्रभावित नहीं करता , बल्कि आपकी इच्छाशक्ति को भी प्रभावित करता है ।
  • सूचना की अधिकता आपकी चिंता को भी ट्रिगर कर सकती है । इसे ही वैज्ञानिक ' ट्रिगर एंग्जायटी ' कहते हैं । सीधे शब्दों में कहें तो जब हम किसी इच्छित चीज के बारे में व्याख्या या विश्लेषण करने लायक जानकारी नहीं खोज पाते , तो एक गलत निर्णय ले लेने की चिंता सिर पर सवार हो जाती है , जो मानसिक सेहत पर नकारात्मक असर करती है ।
  • विशेषज्ञों के अनुसार , अधिक जानकारी एकाग्रता और फोकस को प्रभावित कर सकती है । कई बार अच्छी और खराब गुणवत्ता वाली सामग्री के बीच अंतर करना कठिन हो जाता है ।

 

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